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तमिलनाडु-कोयंबटूर बम धमाकों के मास्टरमाइंड बाशा की मौत, शवयात्रा को लेकर स्टालिन सरकार-भाजपा में तनातनी

कोयंबटूर।

कोयंबटूर में 1998 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मास्टर माइंड एसए बाशा की सोमवार शाम को मौत हो गई। पुलिस ने बताया कि एसए बाशा को उम्र संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहां उसकी मौत हो गई। पुलिस के मुताबिक बाशा के परिजन उसकी शवयात्रा निकालने की तैयारी कर रहे हैं।

इसके लिए पुलिस बल तैनात किया जा रहा है। इसे लेकर स्टालिन सरकार और भाजपा में तनातनी हो गई है। भाजपा ने एक अपराधी और आतंकी की शवयात्रा निकालने की अनुमति देने का विरोध किया है। एसए बाशा प्रतिबंधित संगठन अल-उम्मा का संस्थापक-अध्यक्ष था। उसने 14 फरवरी 1998 को कोयंबटूर में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों की योजना बनाई थी। इसमें 58 लोगों की जान चली गई थी। जबकि 231 लोग घायल हुए थे। मई 1999 में अपराध शाखा सीआईडी की विशेष जांच टीम ने बाशा के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। उस पर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया। बाशा और उसके संगठन के 16 अन्य लोगों को 1998 के बम धमाकों के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने उसे पैरोल दी थी।
पुलिस ने बताया कि वह पैरोल पर था और पिछले कुछ समय से उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। तबीयत बिगड़ने पर उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया और 35 साल जेल में रहने के बाद सोमवार शाम को उसकी मौत हो गई। बाशा के परिजन दक्षिण उक्कदम से फ्लावर मार्केट स्थित हैदर अली टीपू सुल्तान सुन्नत जमात मस्जिद तक उसकी शवयात्रा निकालने की योजना बना रहे हैं। इसलिए पुलिस बल तैनात किया गया है।

भाजपा ने किया विरोध
भाजपा तमिलनाडु के उपाध्यक्ष नारायणन तिरुपति ने कहा कि पुलिस को शवयात्रा निकालने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। अगर किसी अपराधी, आतंकी, हत्यारे को शहीद घोषित किया गया तो इससे समाज में एक गलत मिसाल कायम होगी। उन्होंने एक्स पर लिखा कि किसी भी निर्मम हत्यारे के अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यह शांतिपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए। यह बड़े सम्मान के साथ नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि वे इसके हकदार नहीं हैं। उन्होंने दावा किया कि कट्टरपंथी विचार, हिंसा और सांप्रदायिक समस्याएं 1998 के कोयंबटूर बम विस्फोटों से शुरू हुईं और बाशा इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार था। आज भी विभिन्न राजनीतिक दलों और आंदोलनों में ऐसे सैकड़ों लोग हैं जो प्रतिबंधित अल-उम्मा के सदस्य रहे हैं। भाजपा नेता ने कहा कि उसकी शवयात्रा 1998 की भूली-बिसरी यादें ताजा कर सकती है। इससे भविष्य में सांप्रदायिक मुद्दे बढ़ सकते हैं। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन यह तय करें कि उसका जुलूस न निकले और मारे गए आतंकी बाशा का अंतिम संस्कार सिर्फ उनके परिवार के सदस्यों के साथ ही किया जाए।

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