राजनीति

सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री नहीं बनवा पाने की कसक भी कम नहीं है, भूपेंद्र हुड्डा का टूटा सपना

चंडीगढ़
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को इस बार हाथ से सत्ता जाने का गम तो है ही, साथ ही अपने सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री नहीं बनवा पाने की कसक भी कम नहीं है। कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में जब भी मुख्यमंत्री के पद की दावेदारी का सवाल आया, हुड्डा ने हर बार यही कहा कि वे अभी ना तो टायर्ड (थके) हुए और ना ही रिटायर्ड (सेवानिवृत्त) हुए हैं, लेकिन हुड्डा चाहते थे कि यदि उन्हें मौका मिला तो वह अपने सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए कांग्रेस हाईकमान के समक्ष मुख्यमंत्री के पद की पैरवी करेंगे।

सपना रह गया अधूरा
मगर राज्य में हवा के बावजूद कांग्रेस सत्ता से चूक गई और हुड्डा का बेटे को मुख्यमंत्री बनवाने का ख्वाब भी अधूरा रह गया।  कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि राज्य में उनकी पार्टी की सरकार बनेगी, लेकिन भाजपा ने धरातल पर ऐसा गेम पलटा कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री बनने के दावेदारों के सारे अरमान रखे रह गए। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ कांग्रेस की दलित नेता कुमारी सैलजा ने पूरे चुनाव के दौरान अपनी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को कमजोर नहीं पड़ने दिया। सैलजा की दावेदारी के बीच कांग्रेस महासचिव एवं राज्यसभा सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला ने भी सीएम बनने की इच्छा जताई।

दीपेंद्र हुड्डा ने खुद कभी नहीं की दावेदारी
हालांकि, रोहतक के सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने एक बार भी अपने मुंह से ऐसा नहीं बोला कि वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। अपने भाषणों में दीपेंद्र ने मुख्यमंत्री पद के लिए हमेशा पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की दावेदारी ही पेश की। इसके विपरीत कांग्रेस में चल रही इस कलह के बीच भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाने की जोड़तोड़ में लगे रहे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने जनसभाओं में दीपेंद्र के कामकाज की दिल खोलकर तारीफ की। इससे हुड्डा को अपने बेटे किए माहौल बनाने में आसानी हो गई।

दीपेंद्र हुड्डा के लिए था अच्छा मौका
कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया, पार्टी पर्यवेक्षक अशोक गहलोत और अजय माकन तथा संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल तक अधिकतर वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के भरोसेमंद हैं। इसलिए उन्हें बेटे के लिए पैरवी करने में ज्यादा परेशानी नहीं आती, मगर मामला सिरे चढ़ने से पहले ही बिगड़ गया। हुड्डा की उम्र इस समय 77 साल है। भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार के पांच साल पूरे होने के बाद अब राज्य में 2029 में चुनाव होंगे। उस समय हुड्डा की उम्र करीब 82 साल होगी। ऐसे में तब की परिस्थिति के अनुमान के हिसाब से इस बार हुड्डा के लिए बेटे की पैरवी करना ज्यादा आसान रह सकता था।

हुड्डा के नेतृत्व में लड़े गए 4 चुनाव
हरियाणा में कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में अब तक चार चुनाव लड़े हैं, लेकिन किसी भी चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया है। साल 2005 में कांग्रेस ने तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और कांग्रेस को 67 सीटें मिली थी, लेकिन हाईकमान ने हुड्डा को सांसद होते हुए भी मुख्यमंत्री बना दिया था। इसके बाद साल 2009 का पहला चुनाव हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस ने लड़ा। उस समय कांग्रेस को 40 सीटें मिली, जो कि पूर्ण बहुमत से छह कम थी, राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हुड्डा ने अपने रणनीतिक कौशल के चलते विधायकों का इंतजाम कर लिया था और सरकार बना ली थी।

इसी तरह साल 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 15 सीटों पर संतोष करना पड़ा था, जबकि साल 2019 के चुनाव में कांग्रेस की 31 सीटें आई, जो कि बहुमत से 15 सीट कम थी। इस बार साल 2024 के चुनाव में कांग्रेस की 37 सीटें आई हैं, जो कि बहुमत से 11 सीट कम हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button