छत्तीसगढ़

आने वाले दिनों में घाटशिला कथाकार शेखर मल्लिक के लिए जाना जाएगा – रणेंद्र

आने वाले दिनों में घाटशिला कथाकार शेखर मल्लिक के लिए जाना जाएगा – रणेंद्र

शेखर मल्लिक के उपन्यास "घाटशिला" पर पुस्तक चर्चा

घाटशिला

देश के जाने माने कथाकार और डॉ राम दयाल मुंडा शोध संस्थान, रांची के पूर्व निदेशक रणेंद्र कुमार ने डॉ. शेखर मल्लिक के नए उपन्यास 'घाटशिला' पर अयोजित कार्यक्रम में यह बात कही।
 प्रगतिशील लेखक संघ घाटशिला ईकाई द्वारा आयोजित इस आयोजन में चर्चा की शुरुआत करते हुए विद्यासागार विश्विद्यालय, मेदिनीपुर से आए डॉ. संजय जायसवाल ने लेखक के रचनाकर्म की विशेषताओं को रेखांकित किया। उन्होंने शेखर मल्लिक की आदिवासी विषयक कहानियों – ना…!, युद्ध में, जंगल मोर दुलाडिया जैसी कहानियों की बात करते हुए कहा कि लेखक ने आदिवासियों के विस्थापन, संघर्ष के जरिए मानव समाज के सामने खड़े पर्यावरण संकट, विकास के नारे के पीछे छिपे पक्षपात आदि मुद्दों पर जोरदार आवाज़ उठाई है। आज के दौर में ऐसी कहानियों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ने की जरूरत है।

संजय सोलोमन और सत्यम जैसे युवा साथियों ने उपन्यास की ध्वनि को पकड़ते हुए इसकी समीक्षा की।युवा शायर और डिजिटल कलाकार सोलोमन ने इस उपन्यास का कवर डिजाइन किया है। उन्होंने कहा कि उपन्यास का आमुख उसके कथ्य का संकेत करता है। शेखर मल्लिक के इस उपन्यास को स्कूल कॉलेज में पढ़ाया जाना चाहिए। इस उपन्यास को और शेखर मल्लिक की अन्य रचनाओं को जो प्रकाशकों की अपेक्षा के कारण बड़े पाठक वर्ग की उदासीनता का शिकार हुई हैं, यह नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह उपन्यास कथा साहित्य की एकाधिक विधाओं को समेटता है। यदि कोई कई सालों बाद भी इसे पढ़े तो घाटशिला के बारे में जान सकता है।

सत्यम ने कहा कि यह उपन्यास भावना को कुरेदता है। कहानी में कई सारे गीतों और फिल्मों का जिक्र हुआ है। जिससे वे उन बेहतरीन फिल्मों और गीतों को दोबारा खोजकर देखने सुनने को बाध्य हुए हैं। इस उपन्यास में घाटशिला का इतिहास, ट्रेड यूनियन का इतिहास, बहुत कुछ जानने को मिलता है।

 संयुक्त नाट्य कला केंद्र, घाटशिला के अध्यक्ष और वरिष्ठ रंगकर्मी सुशांत सीट ने कहा कि शेखर मल्लिक के साथ रंगमंच पर काम करते हैं यह उनके लिए गर्व की बात है कि इतने अच्छे लेखक के साथ काम करने का उन्हें मौका मिलता है।
लेखक और कवि सुधीर सुमन ने उपन्यास को भाव पूर्ण रचना बताया। लेखक ने मां से लेकर अन्य स्त्री पात्रों के जीवन संघर्ष को संवेदना के साथ उभारा है।

प्रगतिशील लेखक संघ झारखंड के महासचिव प्रो मिथिलेश ने कहा कि शेखर से अपेक्षाएं बढ़ती हैं। संवाद शैली में लिखा गया यह वृहद उपन्यास पठनीय है। उपन्यास में विचार अंतर्निहित होना चाहिए। बड़े लेखक भीष्म साहनी, मुक्तिबोध की रचनाएं इसका साक्ष्य हैं। प्रेम को मिलन की अपेक्षा होती है। वह अपेक्षा लेखक से है। इनके अन्य उपन्यास कालचिती के मुकाबले इसमें फैलाव अधिक है। कथा की सघनता की कमी है।

रणेंद्र ने कहा कि कोई रचना परफेक्ट नहीं होती। परफेक्शन की तलाश लेखक को करते रहनी चाहिए।इस उपन्यास में अनेक पात्र हैं। घाटशिला के महान नेताओं की चर्चा कथा में पिरोई गई है। सबसे अधिक खूबसूरती इसके बांग्ला मिश्रित भाषा में है। स्त्री पात्रों के संघर्ष की संवेदना से अभिव्यक्ति है।उन्होंने कहा कि जिस तरह घाटशिला से बाहर वालों के लिए विभूति भूषण बंद्योपाध्याय का घाटशिला है, वैसे ही हिंदी वालों के लिए घाटशिला की पहचान शेखर मल्लिक से होगी।

वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी शशि कुमार ने कहा कि सपने वो हैं, जिन्हें खुली आंखों से पूरे करने के लिए देखे जाने चाहिएं। रचना और रचनाकार का एक दायित्व होता है। यह उपन्यास इसी का प्रयास है। लेखक से संवाद वाले हिस्से में शेखर मल्लिक ने कहा कि उनके इस उपन्यास को लिखने में जैसा कि ज्योति ने कहा कि 7 वर्ष लगे। इस लम्बे समय में निजी और राजनीतिक परिदृश्य में कई बदलाव हुए। उपन्यास का शीर्षक ज्योति जी का दिया हुआ है। निजी जीवन के उथल पुथल के बीच उपन्यास लिखा गया है।

नायक मैं कोई भी हो सकता है को प्रेम, सुंदर दुनिया के ख्वाब देखता हूं। यह मैं आप भी हो सकते हैं।
यह उपन्यास घाटशिला के प्रति ऊऋण होने की कोशिश है। जिस तरह विभूति भूषण बंद्योपाध्याय ने घाटशिला को देखा, जिस तरह मैंने देखा, आने वाले वक्त में कोई और लेखक इसे अपनी तरह से देखेंगे।
उन्होंने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए घाटशिला, जमशेदपुर, रांची और बंगाल से आए साथियों का आभार प्रकट किया। प्रलेस की घाटशिला ईकाई, घाटशिला विभूति स्मृति संसद का धन्यवाद किया। उन्होंने इसके आगे कहा कि घाटशिला की जमीन का धन्यवाद, घाटशिला न होता तो मैं कहां होता!

कार्यक्रम का संचालन ज्योति मल्लिक और सत्यम ने संयुक्त रूप से किया।
इस कार्यक्रम में घाटशिला और बाहर के अनेक साहित्य प्रेमी, रंगकर्मी, प्रबुद्ध लोग उपस्थित थे जिनमें मुख्य रहे – कोलकाता
 से कला समीक्षक,लेखक मृत्युंजय श्रीवास्तव, विद्यासागर विश्वविद्यालय मेदिनीपुर में शोधार्थी आदित्य गिरि, रांची से प्रवीण परिमल, जमशेदपुर से डॉ. बी एन प्रसाद, डॉ. के के लाल, प्रो. अहमद बद्र,  इप्टा झारखंड की महासचिव अर्पिता, चंद्रकांत, पथ थियेटर ग्रुप से सुविख्यात नाट्य निर्देशक और अभिनेता मो निजाम, अभिनेत्री छबि दास एवं अन्य, अभिनव सिद्धार्थ, चंद्रकांत, गायक रमन, गोमहेड सांस्कृतिक संगठन के अभिनेता राम, अभिनेत्री और लोक गायिका उर्मिला हांसदा सहित अन्य, वरिष्ठ रंगकर्मी और निर्देशक सुजन सरकार, बलराम सीट, सीपीआई नेता कॉम भुवनेश्वर तिवारी, घाटशिला प्रमुख सुशीला टुडू, उत्तरी मऊभंडार की मुखिया कल्पना सोरेन, पावड़ा की मुखिया पार्वती मुर्मू, आई सी सी मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष कॉम बी एन सिंहदेब, महासचिव कॉम ओम प्रकाश सिंह, संतोष दास, कॉम दुलाल हांसदा, शिक्षक मुकुल महापात्र, गौतम कुमार रॉय, सौरभ रॉय, सुखलाल हांसदा, मल्लिका, मानव, गीता, लखिंदर, कार्तिक चौधरी, विश्वजीत दे, अम्लान राय, किशोरी महतो, बी डी एस एल महिला महाविद्यालय के कुंदन कुमार, डॉ देवी प्रसाद कुंदुर, अरबिंद घोष, सुनीति घोष, घाटशिला कॉलेज के बांग्ला विभाग के डॉ संदीप चंद्रा और अन्य।

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