मध्यप्रदेश

MP पुलिस को मिली बड़ी तकनीकी ताकत: 57 मोबाइल फोरेंसिक वैन से रियल टाइम जुटेंगे साक्ष्य, अपराधियों पर कसेगा शिकंजा

ग्वालियर
गोलीबारी, हत्या, दुष्कर्म, चोरी, गंभीर सड़क हादसों सहित अन्य सनसनीखेज अपराधों में प्राथमिक फोरेंसिक रिपोर्ट अब चंद घंटों में मिल सकेगी। घटनास्थल से जुटाए गए वैज्ञानिक साक्ष्य भी पूर्णत: सुरक्षित रहेंगे। इसकी वजह पुलिस को मिलीं मोबाइल फोरेंसिक वैन हैं।

मोबाइल फोरेंसिक वैन भी घटनास्थलों पर जाएगी
एफआरवी (फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल) की तर्ज पर पुलिस की मोबाइल फोरेंसिक वैन भी अब घटनास्थलों पर दिखाई देगी। हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पहले चरण में 57 मोबाइल फोरेंसिक वैन को हरी झंडी दिखाई। एक मोबाइल फोरेंसिक वैन ग्वालियर को भी मिली है, जो दो दिन बाद ग्वालियर पहुंच जाएगी। अन्य जिलों से भी ड्राइवर इन्हें लेने के लिए भोपाल रवाना हो गए हैं।

24 किट से लैस है एमएफवी

फिंगरप्रिंट, फुटप्रिंट, टायर मार्क, सीमन किट, स्वाब किट, डीएनए किट, रक्त पहचान किट, बाल पहचान किट, विस्फोटक पहचान किट, नशीली दवा और मादक पदार्थ पहचान किट, बेइंग बैलेंस किट, गनशाट-बुलट होल किट, हाईइंटेंसिटी फोरेंसिक लाइट किट सहित 24 तरह की किट से मोबाइल फोरेंसिक वैन लैस है।
 
डिजिटल साक्ष्य का भी परीक्षण
इसमें डीएसएलआर कैमरा, वीडियो रिकॉर्डर, बॉडी वार्न कैमरे, ऑडियो रिकॉर्डर, थर्मल प्रिंटर, एलईडी स्क्रीन जैसे उपकरण भी उपलब्ध होंगे। अब डिजिटल फोरेंसिक का किसी भी घटना में महत्वपूर्ण स्थान है। डिजिटल साक्ष्य जैसे रिकॉर्डिंग, सीसीटीवी फुटेज, वीडियो रिकॉर्डिंग, फोटो व अन्य डिजिटल साक्ष्य को एकत्रित कर प्रारंभिक रिपोर्ट भी दी जा सकेगी।

नेशनल फोरेंसिक यूनिवर्सिटी ने तैयार किया
मोबाइल फोरेंसिक वैन को गुजरात के गांधीनगर स्थित नेशनल फोरेंसिक यूनिवर्सिटी ने तैयार किया है। मप्र में 213 फोरेंसिक वैन पुलिस को दी जाएंगी। पहले चरण में करीब 37 करोड़ रुपये से 57 फोरेंसिक वैन मंगा ली गई हैं।
 
रियल टाइम एकत्रित होंगे साक्ष्य
मोबाइल फोरेंसिक वैन आते ही घटनास्थलों पर रियल टाइम वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्रित होंगे। साक्ष्य की गुणवत्ता और इसके सैंपल की जांच रिपोर्ट की विश्वसनीयता बढ़ेगी। मोबाइल फोरेंसिक वैन के जरिये घटनास्थल से ही रक्त, बाल व अन्य साक्ष्य एकत्रित किए जा सकेंगे। इससे विवेचाना और अपराधियों को सजा दिलाने में आसानी होगी। अभी फोरेंसिक लैब में महीनों तक रिपोर्ट पेंडिंग रहती हैं। प्रारंभिक रिपोर्ट तक नहीं आ पाती। जिससे अपराधी छूट जाते हैं।

 

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