मध्यप्रदेश

करीब 30 दिन से जिस बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग की टीम जंगल की खाक छान रही थी, हुई पूरी, पकड़ाया बाघ

रायसेन
करीब 30 दिन से जिस बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग की टीम जंगल की खाक छान रही थी, उसे गुरुवार की दोपहर ग्राम सूरई के जंगल में पकड़ लिया गया। वन विभाग की टीम को सुबह 7 बजे उसकी पिन प्वाइंट लोकेशन मिल गई थी। लोकेशन मिलते ही 8 बजे तक हाथियों के साथ टीम मौके पर पहुंच गई, जहां उसे घेर लिया गया। हालांकि इस दौरान बाघ ने टीम को काफी छकाया। करीब 11 बजे डाक्टर व विशेषज्ञों की टीम भी वहां पहुंच गई। 12 बजकर 5 मिनट पर बाघ को गन की मदद से पहला इंजेक्शन दिया गया। इसके बाद उसकी मूवमेंट कुछ धीमी हो गई। इसके बाद 1 बजकर 30 मिनट पर उसे दूसरा इंजेक्शन दिया गया, जिससे वह पूरी तरह बेहोश हो गया।

डॉक्टरों की टीम ने उसके स्वास्थ्य की जांच की। गर्मी अधिक होने से बाघ के ऊपर पानी का छिड़काव किया गया और आक्सीजन भी दी गई। पूरी तरह से निश्चिंत होने के बाद बाघ को टीम ने पिंजरे में पहुंचाया, करीब 4 बजे बाघ वापस होश में आ गया। फिलहाल उसे पिंजरे सहित गोपालपुर स्थित तितली पार्क में रखा गया। वाइल्ड लाइफ के अधिकारियों व विशेषज्ञों की सलाह के बाद निर्णय लिया जाएगा कि उसे कहां भेजा जाना है, लेकिन उससे पहले करीब 7 से 8 दिन उसे ऑब्जर्वेशन में रखा जाएगा।

बाघ को पकड़ने में 25 से 30 लाख खर्च
तीस दिन पहले हुई तेंदूपत्ता मजदूर मनीराम की मौत के बाद से ही वन विभाग की टीम बाघ की सर्चिंग में जुट गई थी। उसकी मूवमेंट पर लगातार नजर रखी जा रही थी। इस काम में वाइल्डलाइफ के क्षेत्र में काम करने वाले दो एनजीओ डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और डब्ल्यूसीपी की टीम भी वन विभाग की मदद कर रही थी। एनजीओ ने विभाग को अधुनिक कैमरे व अन्य तकनीकी मदद प्रदान की। 20 दिन बाघ की निगरानी करने के बाद वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर कान्हा, पन्ना नेशनल पार्क व वन विहार भोपाल की 40 सदस्यीय टीम बाघ को रेस्क्यू करने रायसेन पहुंची। इस टीम के साथ वन विभाग के करीब 100 कर्मचारी मिलाकर करीब 140 सदस्यीय टीम 10 दिन से बाघ को पकड़ने में जु़टी हुई थी। रायसने डीएफओ के अनुसार इस पूरे रेस्क्यू आपरेशन में करीब 25 से 30 लाख रुपए खर्च हो गया है।

आदमखोर नहीं है बाघ
बाघ के बारे में जानकारी देते हुए डीएफओ विजय कुमार ने बताया कि उसको लेकर यह बात फैलाई जा रही थी कि वह आदमखोर है, यह पूरी तरह से गलत हैं। दरअसल तेंदूपत्ता मजदूर के साथ जो घटना हुई, वह एक हादसा था। उस घटना के बाद हमने लगातार बाघ का ऑब्जर्वेशन किया। इसमें कही भी आदमखोर जैसे लक्षण सामने नहीं आए हैं। आदमखोर बाघ इंसान का पीछा करके उसका शिकार करता है, लेकिन ऐसी एक भी घटना सामने नहीं आई है। मनीराम की मौत के बारे में की गई पड़ताल में पता चला है कि घटना के समय बाघ नाले में आराम कर रहा था, अचानक मजदूर के सामने आाने पर उसने हमला कर दिया।

उसका रेस्क्यू सिर्फ इसलिए किया गया है, क्योंकि बाघ जिस क्षेत्र में अपनी टेरेटरी बना रहा था, उसके बीच में काफी सारे गांव, शहर और सड़कें आती थी, जहां से वह गुरजता था। इसकी वजह से लोगों में डर बना हुआ था। साथ ही बाघ की सुरक्षा को लेकर भी खतरा था। अब उसे वाइल्डलाइफ के अधिकारियों के मार्गदर्शन में सुरक्षित जगह भेजा जाएगा।

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