राजनीति

तृणमूल कांग्रेस ने गंगा के मैदानी इलाकों में जीत हासिल की, उत्तर बंगाल के जंगलमहल में बढ़त बनाई

कोलकाता

 तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में गंगा के मैदानी इलाकों में अपना परचम लहराया और राज्य की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले पश्चिमी जंगलमहल क्षेत्र में भी बढ़त हासिल करते हुए यहां 29 में से 18 सीट हासिल की हैं।

भाजपा हालांकि, उत्तर बंगाल और दक्षिण बंगाल में मतुआ पट्टी पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने में सक्षम थी, जो राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में भी महत्व रखता है।

ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी ने पिछले चुनाव की तुलना में सात अधिक सीट हासिल की हैं। उसने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 29 सीट पर जीत प्राप्त की है, जबकि भाजपा ने केवल 12 सीट जीतीं, जो 2019 में उसे प्राप्त सीटों से 18 कम हैं।

कांग्रेस केवल एक सीट जीतने में सफल रही, जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) पिछले चुनाव की तरह अपना खाता खोलने में विफल रही।

तृणमूल कांग्रेस ने गंगा के मैदानी इलाकों में 16 लोकसभा सीट में से 14 सीट जीती हैं। इस क्षेत्र में उत्तर और दक्षिण 24 परगना, कोलकाता, हावड़ा और हुगली जिले शामिल हैं। इस क्षेत्र में भाजपा की सीट तीन से घटकर दो रह गईं।

तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने डायमंड हार्बर में ‘हैट्रिक’ बनाते हुए 7.10 लाख वोटों के रिकॉर्ड अंतर से जीत हासिल की, जो शायद पिछले कुछ दशकों में पश्चिम बंगाल में जीत का सबसे ज्यादा अंतर है।

भाजपा को बशीरहाट निर्वाचन क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की उम्मीद थी, जिसके अंतर्गत संदेशखालि आता है, लेकिन उसकी उम्मीदवार रेखा पात्रा को तृणमूल के हाजी नुरुल इस्लाम से लगभग दो लाख वोट से हार का सामना करना पड़ा है।

इस क्षेत्र में प्रभावी रही तृणमूल कांग्रेस ने सत्ता विरोधी लहर और मौजूदा सांसदों के खराब प्रदर्शन के कारण छह सीट – उत्तर 24 परगना में तीन, दक्षिण 24 परगना में दो और हुगली में एक पर नए उम्मीदवारों को खड़ा किया।

साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भी, तृणमूल ने 24 परगना के दो जिलों में सभी सीट पर जीत हासिल की थी।

तृणमूल कांग्रेस ने जंगली और आदिवासी बहुल पश्चिमी जिलों में भी अच्छा प्रदर्शन किया, जिन्हें सामूहिक रूप से जंगलमहल के नाम से जाना जाता है। इस इलाके में आठ संसदीय क्षेत्र हैं। भाजपा और टीएमसी ने जंगलमहल में चार-चार सीट जीतीं, जबकि राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी को 2019 की तुलना में एक सीट का फायदा हुआ।

भाजपा को तब झटका लगा जब केंद्रीय मंत्री और निवर्तमान सांसद सुभाष सरकार बांकुरा सीट पर तृणमूल के अरूप चक्रवर्ती से 32,778 वोटों के अंतर से हार गए।

हालांकि, भाजपा उत्तरी बंगाल में अपना प्रभुत्व बनाए रखने में सफल रही, जिसमें पहाड़ियां, तराई और दुआर्स शामिल हैं, जहां उसे आठ में से छह लोकसभा सीट पर जीत मिली है।

कांग्रेस उम्मीदवार इशा खान चौधरी ने मालदा दक्षिण से 1.28 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की। केंद्रीय मंत्री निसिथ प्रमाणिक कूचबिहार में तृणमूल कांग्रेस के जगदीश चंद्र बर्मा बसुनिया से 39,250 वोटों से हार गए।

जीतने वाले भाजपा उम्मीदवारों के लिए जीत का अंतर भी कम हो गया। दार्जिलिंग में निवर्तमान सांसद राजू बिस्ता की जीत का अंतर 2019 में 4.13 लाख से घटकर 2024 में 1.78 लाख हो गया, जबकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने बालुरघाट सीट केवल 10,386 वोट से जीती। पिछले चुनाव में वह 33,293 वोट से जीते थे।

दक्षिणी पश्चिम बंगाल में मतुआ बहुल पट्टी में, भाजपा ने बनगांव और राणाघाट दोनों पर जीत हासिल की है। केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने 73,693 वोट के अंतर से जीतकर बनगांव सीट बरकरार रखी।

तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा पास की कृष्णानगर सीट से 56,705 वोट से जीत गई हैं।

अपने बलबूते ममता ने बचाया पश्चिम बंगाल में टीएमसी का गढ़

 पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए एक बार फिर ममता बनर्जी का ‘जादू’ काम आया और पार्टी ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 29 पर जीत हासिल की। इतना ही नहीं टीएमसी ने भाजपा को पिछली बार की 18 सीटों से पीछे धकेल कर उसे 12 तक ही सीमित कर दिया। भाजपा को 39 प्रतिशत से भी कम वोट मिले।

हालांकि दीदी ने जीत का श्रेय राज्य की जनता को दिया और चुनावी नतीजों को ‘बंगाल के विरोधियों को जनता का ठेंगा’ करार दिया। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि ममता का राजनीतिक करिश्मा, सड़क पर उतरकर लड़ाई लड़ने वाली जुझारू नेता की उनकी छवि और भाजपा के प्रति उनका उग्र विरोध उनके समर्थकों के विश्वास को बनाए रखने में कहीं अधिक काम आया। इससे उन्हें सत्ता विरोधी लहर के बावजूद पार्टी के 2021 के राज्य विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को लगभग दोहराने में मदद मिली।

बनर्जी के पक्ष में उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता के अलावा जिस कारण से वह जीत को बरकरार रखने में कामयाब रहीं वह है ‘लाभार्थी राजनीति’, जिसे उन्होंने राज्य में अपने कार्यकाल के दौरान सक्रिय रूप से अपनाया। इसने विपक्ष के बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों और सत्ता-विरोधी ज्वार को कम कर दिया।

‘लक्ष्मी भंडार’ और ‘कन्याश्री’ जैसी परियोजनाओं के लाभार्थियों ने भी बनर्जी को बड़े पैमाने पर समर्थन दिया। उन्होंने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि टीएमसी प्रमुख के कई नेता जेल में हैं, केंद्रीय जांच एजेंसियां उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी सहित कई अन्य लोगों पर शिकंजा कस रही हैं और केंद्रीय कोष पर प्रतिबंध लगा हुआ है, जिससे राज्य की कल्याणकारी योजनाएं कथित तौर पर पटरी से उतर गई हैं।

इस प्रक्रिया में उन्होंने खुले तौर पर पीड़ित कार्ड खेला और ‘बाहरी लोगों’ से राज्य के लोगों की रक्षक के रूप में अपनी छवि को बढ़ावा दिया।

लोकसभा चुनाव 2014 बनर्जी के राजनीतिक जीवन का सबसे अच्छा समय था जब उन्होंने राज्य की 42 लोकसभा सीट में से 34 पर कब्जा किया था। उन्हें शायद 2021 के राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा के जबरदस्त प्रभाव का सफलतापूर्वक प्रतिरोध करने के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाएगा, क्योंकि इस चुनाव में भाजपा ने अभूतपूर्व प्रचार अभियान चलाकर अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी।

बनर्जी के अथक अभियान (जिसमें से अधिकांश उन्होंने नंदीग्राम में अपने प्रचार अभियान के दौरान कथित तौर पर लगी चोट के कारण व्हीलचेयर से ही संचालित किया था) और पार्टी की चुनाव सलाहकार एजेंसी द्वारा तैयार की गई चुनावी रणनीतियों के कारण टीएमसी 215 सीटों पर पहुंच गई और भाजपा को उसने 77 सीटों तक सीमित कर दिया।

हालांकि भाजपा अपनी पिछली तीन सीटों की संख्या से कई गुना अधिक सीटें हासिल करने में सफल रही और उसने विधानसभा में एकमात्र विपक्ष के रूप में खुद को स्थापित किया, लेकिन राज्य में भाजपा की राजनीतिक आकांक्षाओं को करारा झटका देने का श्रेय बनर्जी और अभिषेक को दिया गया।

लेकिन मौजूदा लोकसभा चुनाव ममता द्वारा अपने बलबूते पर पश्चिम बंगाल में अपने गढ़ को बचाने के लिए याद किया जाएगा।

 

 

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